November 8, 2014

यह संसार  क्या है?
सब मोह और  माया है ।

अविनाशी महत्वाकांक्षाओं
की छवी और छाया है ।

पर व्यतीत करना हमे जीवन
इसी प्रलोभन भरे संसार मेँ है ।

करते हुए  अनश्वर महत्वाकांक्षाओं
के नश्वर प्रचार में है ।

सत्य यहीं है मिथ्या यहीं है
हर वस्तु में बस्ती है अलौकिकता ।

एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें
तो मिट जायेगी  तत्काल अराजकता   ।

कर्म में आनंद हो  और आनंद  का  ही  मोह हो
वास्तविकता और कल्पना में न कभी विद्रोह हो ।

स्वयं के उद्भेद में सत्यता क आभास हो
और इसी  जीवन काल में परिपूर्णता छूने का  प्रयास हो । 

ये माया  जाल फ़िर एक अवसर  मेँ   परिवर्तित हो जाएगा
और हर कृत्रिम भाव भी  प्राकृतिक हो जाएगा । 

अनंत काल से ही तो   संघर्ष जीवन का  प्रतिरुप है
और कर्तव्यनिष्ठ जीवनी ही  मोक्ष का  स्वरुप है । 

आत्म से अवगत हो हम कि  हर्ष और उल्लास को एक  नई  परिभाषा मिले
प्रतेक  ह्रदय में यहां अभिज्ञ अभिलाषा खिले ।