यह संसार क्या है?
सब मोह और माया है ।
अविनाशी महत्वाकांक्षाओं
की छवी और छाया है ।
पर व्यतीत करना हमे जीवन
इसी प्रलोभन भरे संसार मेँ है ।
करते हुए अनश्वर महत्वाकांक्षाओं
के नश्वर प्रचार में है ।
सत्य यहीं है मिथ्या यहीं है
हर वस्तु में बस्ती है अलौकिकता ।
एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें
तो मिट जायेगी तत्काल अराजकता ।
कर्म में आनंद हो और आनंद का ही मोह हो
वास्तविकता और कल्पना में न कभी विद्रोह हो ।
स्वयं के उद्भेद में सत्यता क आभास हो
और इसी जीवन काल में परिपूर्णता छूने का प्रयास हो ।
ये माया जाल फ़िर एक अवसर मेँ परिवर्तित हो जाएगा
और हर कृत्रिम भाव भी प्राकृतिक हो जाएगा ।
अनंत काल से ही तो संघर्ष जीवन का प्रतिरुप है
और कर्तव्यनिष्ठ जीवनी ही मोक्ष का स्वरुप है ।
आत्म से अवगत हो हम कि हर्ष और उल्लास को एक नई परिभाषा मिले
प्रतेक ह्रदय में यहां अभिज्ञ अभिलाषा खिले ।